नवीन कुमार मिश्र
अपना लोकनिक समाजमे कोनो नै कोनो हिसाबं सं बारहो मास पावनि–तिहार पडिते अछि । ओना बच्चे सं कतेको विधि–व्यवहार देखैत–सुनैत अएलहुँ अछि ।हमरे जका बहुतो गोट्य शहरमे रहबा लेल बाध्य अछि । मुदा जखनहि कोनो मांगालिक काज उपस्थित होइत अछि त मोन पडि जाइत छथि । कुल देवी,कुल देवता, अपन गामक बुढपुरान,सर कुटुम्ब आ समाज । तैं हमरा लाकनि सोझे गामक टिकट कटा लैत छी । गाममे पंडित भेटैत छथि, पुरोहित भेटैत छथि,विधिकरी भेटैत छथि, आ पूर्णरुपेण ससुविधा संग मांगलिक काजक सम्पादन होइत अछि ।
अपन संस्कृति आ संस्कार पर चौतरफा प्रहार भअ रहल अछि । तै अपन संस्कृति विरासत के दिनानु दिन अपरिचित भेनाई दुर्भाग्यपुर्ण होयवाक सम्भावना । तै युवा पुस्ता पर बेशी जिम्मेवारी होयब आवश्यक,नहि त आवओ दिन दुर नहि जे बेशी पराभव भोगव पडि सकैत अछि । अपना सभहक दुरा दलान सेहो एकटा वेज्ञानिक धारणाक पृष्ठिपोषक सेहो थिक । किछु पावनि–तिहार विशुद्धतः स्वास्थ्य रक्षा आ व्यवहारिकताक दृष्टिएं महत्वपूर्ण अछि । जेना जुडशीतलमे थाल–कादो लगाएब प्राकृतिक चिकित्सामे सेहो चर्च महत्वपूर्ण बात अछि । माटि लेपन द्धारा रोग निवारक विधि प्रशस्त अछि ।
मिथिलाक संस्कृतिमे व्यवहारक बड महत्व अछि । व्यवहार सामाजिक कडी के मजबुति प्रदानक्रिया सेहो. थिक । समाज लोक सं बनैत अछि ।
जाहि समाजक सदस्य लोकनि जतेक बेसी व्यवस्था कुशल होइत अछि । ओहि समाजमे ततेक बेसी अपनत्वक बन्धन मजबुत होइत छैक । व्यवहार समाजिक क्रिया थिक । ओ ओतेक बेसी सांस्कृतिक मुल्यक रक्षाक प्रति सचेष्ट रहैत अछि, दोसरके के नजरिमे सांस्कृतिक उच्चताक परिचायक भए आदरक पात्र बुझल जाइत अछि ।
मिथिलाक नदि, नाल, पोखरी ई सब मातृत्व बोध करबैत अछि । मिथिलामे जीवन–यापनक मुख्य आधार कृषि कर्म देखल जाइत अछि । रोपब,काटब,ओसाएब आ फेर उत्सवपूर्वक ‘लबान’ करैत अछि । कृषि कार्यक सहायक थिक पशु । तैं पशुपतिक पुजा–अर्चना करैत अछि । पशुक लेल ‘पखेब’ मनबैत अछि । पशुधनक रक्षाक हेतु विभिन्न देवी देवताक वाहनक रुपमे पशु–पंक्षीक परिकल्पना कएल गेल अछि । व्रत उपवास से सात्विक वृत्तिक वृद्धि होइत छैक ।
आत्म–संयम सं व्यक्तिगत लाभाकाक्षाक स्थान पर परिवार आ समाज महत्वपूर्ण भए जाइत अछि । ओहिना कतेको पावनि–तिहारक समाजिक महत्व आ गरिमा छैक । आएब–जाएब सं लोक–लोकक बीच प्रेम आ रागारत्मक सम्बन्ध,सुत्र सुदृद्ध होइत अछि । सामाजिकता बढैत अछि । तैं पावनि–तिहारक कडी सं सामाजिक अन्र्तदवन्द, आपसी मेलमिलाप, जातिपातिक भेदभाव इत्यादी सभक रक्षा कवच के रुपमे देखल जाइत अछि संगही सकारात्मक सोच आ विचार मे सेहो पूर्णबल के काज करत ।